भारतीय विज्ञानं महासम्मलेन की 102वी सभा मुम्बई विद्यापीठ में संप्पन्न हुई। इस सम्मेलन में अनेक विषयों पर चर्चा हुई। उन में से एक चर्चा का विषय भारतीय विज्ञान का इतिहास था, जिस पर बहुत गर्मा गर्मी हुई। अपने देश में इस मुद्दे पर कोई एक मत नहीं है। कुछ लोग मानते है कि अपने पूर्वजों को सब कुछ पता था, आधुनिक विज्ञान की कई शाखाओं के बारे में भी। जब कि और कुछ लोग मानते हैं की यह सब बकवास है तथा इसके ऐसे कोई सबूत नहीं हैं जिन को जांचा जा सके।
इसमें तीन मुद्दों पर बहुत चर्चा हुई। पहला था प्राचीन भारत का विमान शास्त्र। इस में चार प्रकार के विमानों का वर्णन किया गया है। इनमें से एक के आधारताल का व्यास 300 मीटर से भी ज्यादा बताया गया है। जब इसका विश्लेषण भारतीय विज्ञान संस्थान बंगलोर के वैज्ञानिकों ने किया, तो यह पाया कि यह विमान के आधारभूत नियमों का उल्लंघन करता है। मेकेनिकल इंजीनियरिंग तथा उड्डाण विभाग के सारे माप दंडों का भी उल्लंघन करता है। भारतीय विज्ञान के बारे में ऐसी झूठी कहानी बनाना तथा उसका प्रचार करना क्या सही है?
लेकिन बाकी दो विषय बहुत ही अलग हैं। एक तो है भारत की औषधशास्त्र, जिसका हमें प्रत्यछ रूप से प्रमाण मिलता है। इसका एक उदहारण प्लास्टिक सर्जरी है। कटे हुए नाक तथा ख़राब त्वचा को बदलकर नयी त्वचा लगाने का वर्णन सुश्रुत ने सुश्रुत संहिता में किया है। यह किताब यह दर्शाता है कि भारत इस शास्त्र में कितना आगे था।
तीसरा मुद्दा गणित के बारे में था। इस विषय में बहुत सारे प्रमाण हैं जो हमें बताते हैं कि हम इसमें कितना आगे थे। जो सिद्धांत पायथागोरास के नाम पर मशहूर है, वास्तव में उस का प्रमाण प्राचीन भारत के बौद्धयन नाम के गणितज्ञ ने बहुत वर्ष पहले ही दिया था!
जहा तक दार्शनिक शास्त्र की बात है, और वैज्ञानिक सोच की बात है, तो प्राचीन भारत में न केवल दैविक, बल्कि निरीश्वरवाद धारा भी थी, जो मानती थी कि ईश्वर है ही नहीं। उसके इस शाखा की सोच यह थी कि कोई भी पदार्थ बिना किसी दूसरे पदार्थ का उत्पन्न हो ही नहीं सकता। इस शाखा के अनुसार प्रकृति का निर्माण सिर्फ इसके आंतरिक गतिविधि से ही होता है।
क्या अपने देश के विरासत की इतनी बड़ी वैज्ञानिक व तर्कसंगत सोच को दुनिया के सामने नहीं लेकर जाना चाहिए? हम नही कह सकते कि भारतीय विज्ञान पूर्ण रूप से तर्कविहीन था।
हमें अपनी विरासत के बारे में झूठी कहानी फैलाने की कोई ज़रूरत नहीं है। अगर ज़रूरत है तो उन दबे हुए तथ्यों को बाहर निकालना।
आज का जो युवा वर्ग है यह अपने इतिहास के बारे में सच्चाई जानने के लिए बेताब है, चाहे वह गौरवपूर्ण हो या शर्मनाक। लेकिन आज की शिक्षा व्यवस्था का यह ध्येय ही नहीं है।
.उग्रसेन