बेटी को जग कहे पराई … ?
दोनों घर की मर्यादा को
मूरख दुनिया ठुकराई………
मायका उसका दीपक
ससुराल है उसकी बाती
त्याग तले में प्रेम दीप है
सदा जलाती आई
बेटी को जग कहे पराई!
कोयल बन बाबा घर चहके
साजन के घर बुलबुल
दोनों कुलों का मान
सदा से ढोती आई
बेटी को जग कहे पराई!
महादान सुख बाबा पावे
सफल यज्ञ पति करावे
दोनों घरकी सारी रस्में
खुद कंधे पर ढोती आई
बेटी को जग कहे पराई!
चंचल चित्त मायके में रखती
ससुराल में काया धरे
दोनों घर बेटी बँट गयी
रखे न अपने हित कुछ भी
है सदा, लुटाती आई
बेटी को जग कहे पराई!
चढ़ चुकी है, चाँद चढाई,
नाप चुकी है, सागर गहराई
दोनों घर को, जो जानती है
उसे मूरख दुनिया कहे पराई…….।
बेटी को जग कहे पराई!
*This poem was sent by one of our readers.