
हमारे देश में विविध भाषाएं बोली जाती हैं। अगर विश्व में देखा जाए, तो भारत ही एक ऐसा देश है, जहां इतनी भाषाएं बोली जाती हैं। इन भाषाओं का एक अपना इतिहास तथा महत्व है। आज इन की दशा दयनीय होती जा रही है। आज हमारे देश में अंग्रेज़ी को इतनी प्रधानता दी जा रही है कि लोग अपने बच्चों को अपनी मातृभाषा में शिक्षा दिलाना भी उचित नहीं समझते हैं, जब कि हमें पता है कि हर विद्यार्थी अपनी मातृभाषा में अच्छी तरह से सीखता है। विश्व के दूसरे देशों में, जैसे कि चीन, जापान, फ्रांस, जर्मनी, इ. देशो में, लोग अपने बच्चों को अपनी अपनी मातृभाषा में शिक्षा दिलाते हैं।
अगर मैं अपनी बात बताऊ, तो मैं एक छोटे से गांव से हूँ। वहाँ पर दसवी तक हिंदी में सिखाया जाता है। वहां मैं एक अच्छा छात्र था। उच्च शिक्षा की तलाश में मैं मुम्बई आया। यहां के कॉलेजों का पाठ्यक्रम अंग्रेज़ी भाषा में होता है, जिस की वजह से मुझे मुश्किलातों का सामना करना पड़ा। पहले पहले तो मुझे वर्ग में कुछ भी नहीं समझ आता था। उस से मेरे आत्मविश्वास को बहुत क्षति पहुंची।
मुझ जैसे अनगिनत विद्यार्थी इसी समस्या से जूझ रहे हैं। अच्छी अंग्रेजी न आने से वे बहुत बार पीछे पड़ जाते हैं, तथा समाज में अपमानित होते हैं और हीन माने जाते हैं।
जब हम अंग्रेज़ी भाषा को अपनी भाषाओं की तुलना में प्रधानता देते हैं, तो हम भूल जाते हैं कि इस से हमारे देश की विभिन्न भाषाओं का हनन होता है। क्या हम आज भी मानसिक तौर पर अंग्रेज़ों के गुलाम ही हैं? आज़ाद भारत में हमें अपनी अपनी भाषाओं में बोलने की तथा उच्च शिक्षा पाने की आज़ादी क्यूं नहीं है?
मैं यहां स्पष्ट करना चाहता हूं कि मुझे अंग्रेज़ी सीखने में कोई हर्ज नहीं है। परंतु इसे सारे विद्यार्थियों पर थोपा नहीं जाना चाहिए।
उग्रसेन