अपने ही घर में कैदी, यह कैसी आज़ादी?
जुल्म को सहते रहना, जुल्म है घोर।
हे बंधू, चल आज़ादी की ओर।
आज़ादी की ओर चलना, आज़ादी की ओर।।
कौमवाद और धर्मवाद के बल पर
ये जाली सरकारें आयी चुन कर।
सदियों से ही झूठे वादे दे कर
नरभक्षी गिद्ध बैठे सिंहासन पर।
नहीं अपने घर में रोटी, भूखे हैं बेटा बेटी
जोड़ कर भूखे कंगालों की डोर
हे बंधू, चल आज़ादी की ओर।।
देशी-विदेशी पूंजीवाद ने ले करके
खून वतन का चूस लिया है।
टीवी रेडियो द्वारा विज्ञापन से
बुद्धि को भी अलग किया है तन से।
यूँ मीठीं बोल कर बोली, करती है जेबे खाली
उस चमक धमक के भीतर छुपा है चोर
हे बंधू, चल आज़ादी की ओर।
आज़ादी की ओर चलना, आज़ादी की ओर।।
– अनुपमा