बहुत जी लिए सिर्फ खुद के लिए, अब जीना है अपने साथ सभी के लिए ।
सरहद पर जान देने वालों में से एक शायद हम नहीं..
लेकिन अगर बन आए समाज के लिए कुर्बानी देने की तो पीछे हटने वालों में से भी हम नहीं।
भरा हुआ है धरती का स्वर्ग रोजाना बेआबरु होती औरतें और बच्चे जवानों के जनाज़े के मंज़रों से..
रोता है मेरा दिल जब देखता है कि लोगों की रक्षा करने वाले हाथ खुद रंगे हैं मासूमों के खून से।
रोती है मेरी रूह जब सोचती है कि वहां के बच्चों के सपने तक है छीन लिए..
तब खयाल आता है कि, बहुत जी लिए सिर्फ खुद के लिए.. अब जीना है अपने कश्मीरी भाई-बहनों की आजादी के लिए।
एक तरफ अपनी परेशानी, अपना कैरियर यह सवालों के ढेर है हमें परेशान किए जा रहा..
पर खुद से बाहर आकर देखा तो नजर आया कि भुखमरी और गरीबी है छोटे-छोटे बच्चों की जान लिए जा रहा।
अरे, उन विधवा बहनों की परेशानियों की सोचो जिनके किसान पतियों ने परेशान होकर खुदखुशी है अपनाई..
1984, 1992, 2002 के दंगों में जान गवाने वाले मासूमों की चीखें आज तक देती है उनके अपनों को सुनाई।
तो मन में एक सवाल उठता है..
कौन है इन मासूमों के मौत के जिम्मेदार ? लोगों की जान है किसकी जिम्मेदारी ? क्या इन दरिंदों ने अपने अंदर के इंसान हैं मार दिए ??
तब खयाल आता है कि, बहुत जी लिए सिर्फ खुद के लिए.. अब जीना है मासूमों की जान लेने वालों का राज ख़तम करने के लिए।
कभी-कभी सामने नहीं दिखती है कोई राह लगता है जीवन में है केवल घना अंधेरा..
तब याद करती हूं उन लोगों को जो मेरी ही तरह लाना चाहते हैं समाज में रोशनी और सवेरा।
इतना तो अब समझ आया है कि जब हम करेंगे औरों के लिए कुछ तो कभी भी नहीं होंगे दुखी..
अरे, औरों के लिए जीने का मज़्ज़ा ही कुछ ऐसा है कि उनकी हंसी बन जाती है अपने जीवन की खुशी।
तब और भी ताकत मिलती है कारवां में जुड़ने वाले उन साथियों से जिनका भी यही मकसद है जीवन जीने के लिए..
तब खयाल आता है, बहुत जी लिए सिर्फ खुद के लिए.. अब जीना है अपने साथियों के लिए, अब जीना है अपने मकसद के लिए।
बहुत देखे भुखमरी से मरते हुए बच्चे..अब जीना है उनका बचपना वापस लाने के लिए।
बहुत देखे औरतों पर अत्याचार होते हुए.. अब जीना है औरतों की हक्कों की लड़ाई लड़ने के लिए।
बहुत जी लिए मजहब की जंजीरों में बंध कर.. अब जीना है मजहबी दंगे भड़काने वालों को जंजीरों में जकड़ने के लिए।
बहुत जी लिए देशद्रोही, आतंकवादी कहलाए जाने के डर के अंदर.. अब जीना है रस्ते पर उतरकर आवाज बुलंद करने के लिए।
बहुत जी लिए लोकतंत्र के भ्रम में.. अब जीना है सच्ची खुशहाली लाने के लिए।
बहुत सुन चुके झूठे वादे.. अब जीना है जवाब मांगने के लिए।
बहुत सुन चुके संविधान में समाजवाद का जिक्र.. अब जीना है असली लोगों का राज लाने के लिए।
बहुत जी लिए शोषण सहते हुए.. अब जीना है शोषकों के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए।
बहुत जी लिए गुलामी में.. अब जीना है सच्ची आजादी के लिए।
बहुत जी लिए चुपचाप रह कर.. अब जीना है आवाज उठाने के लिए।
बहुत जी लिए सिर्फ खुद के लिए..अब जीना है समाज के लिए ।
– शिरीन