दोस्तों, आज़ादी के संघर्ष में अनगिनत शहीदों ने कुर्बानियां दी थी। क्या आज आज़ादी के 70 साल बाद भी उनके सपने पुरे हुए हैं? भगत सिंह और अन्य गदरियों का सपना था कि ऐसा वतन बनाना जहां इंसान का इंसान द्वारा शोषण ना हो। उनका सपना आज भी अधुरा है। इस कविता का उद्देश्य केवल नकारात्मक चीज़े सामने लाना नहीं है। शहीदों के सपने जो आज भी अधुरे है, उन्हें पूरा करना आज हम युवकों के हाथां में है। आज समाज में जो अन्याय व अत्याचार हो रहे हैं, उन्हें मिटाना भी आज हम नौजवानों का कर्तव्य है। आईये हम सब मिलके शहिदों के उन अधुरे सपनां को पूरा करें, और एक नये समाज की रचना करें।
किसके माथे से गुलामी की सियाही छूटी ?
मेरे सीने मे दर्द है महकुमी का
मादरे हिंद के चेहरे पे उदासी है वही
कौन आज़ाद हुआ ?
खंजर आज़ाद है सीने में उतरने के लिए
वर्दी आज़ाद है बेगुनाहों पर जुल्मो सितम के लिए
मौत आज़ाद है लाशों पर गुजरने के लिए
कौन आज़ाद हुआ ?
काले बाज़ार मे बदशक्ल चुडैलों की तरह
कीमते काली दुकानों पर खड़ी रहती है
हर खरीदार की जेबो को कतरने के लिए
कौन आज़ाद हुआ ?
कारखानों मे लगा रहता है
साँस लेती हुयी लाशों का हुजूम
बीच मे उनके फिरा करती है बेकारी भी
अपने खूंखार दहन खोले हुए
कौन आज़ाद हुआ ?
रोटियाँ चकलो की कहवाये है
जिनको सरमाये के द्ल्लालो ने
नफाखोरी के झरोखों मे सजा रखा है
बालियाँ धान की गेंहूँ के सुनहरे गोशे
मिस्रो यूनान के मजबूर गुलामो की तरह
अजनबी देश के बाजारों मे बिक जाते हैं
और बदबख्त किसानों की तडपती हुयी रूह
अपने अल्फाज मे मुंह ढांप के सो जाती है
कौन आजाद हुआ ?
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