स्पार्क के संपादक,
उम्र के लगभग पैंतीस साल बीत चुके हैं लेकिन रेल का सफर अब मेरे लिए काफी चिंताजनक हो गया है | जो सवाल मुझे बेहद परेशान करता है वही यक़ीनन सभी रेल प्रवासियों को सताता है| प्रतिदिन औसतन तीन से चार घंटे रेल में सफर करना, वही ट्रेन वही मुसाफिर, वही सीट,रेल उनकी ज़िन्दगी का एक हिस्सा बन चुकी है | रेल दुर्घटना की खबरें तो अब देश के तमाम हिस्सों से आने लगी हैं और उन तमाम दुर्घटनाओं में भीड़ का प्रकोप रेल कर्मियों को ही झेलना पड़ता है | मैं यहाँ उदाहरण देना जरुरी नहीं समझता हम सभी ने अपने अनुभव से देखा है कई बार रेल कर्मियों को खुद भी कोसा होगा परन्तु मेरी उत्सुकता का विषय तो यह बताना है कि 27 अक्टूबर 2017 को लोक राज संगठन द्वारा आयोजित मीटिंग में पहली बार मंच पर रेल प्रवासी और रेल संगठनों ने मिलकर अपने दुःख को जनता के समक्ष जाहिर किया और दोनों ही ने एक दूसरे की तरफ दोस्ती का हाथ मिलाकर रेल समबन्धित समस्याओं से प्रशासन और राज्य के खिलाफ लड़ने का बीड़ा उठाया |
लोक राज संगठन की रेल प्रस्तुति ने बतौर दर्शक मेरे सारे अनकहे पहलुओं को छुआ और पूरी रेल समस्या पर आंकड़ों के साथ विश्लेषण पेश किया | यह बहुत ही आश्चर्यजनक है और रोचक भी कि मालगाड़ी में भार निर्धारित है परन्तु लोकल ट्रेन में ऐसे कोई नियम नहीं हैं |80 लाख लोगों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने वाली लोकल रेल अपनी क्षमता से ढाई गुना ज्यादा बोझा ढो रही है | समय बदलने और प्रवाशी बढ़ने की वजह से लोकल ट्रेन में तो इजाफा हुआ परन्तु पटरियों के मरम्मत और बदलाव पर ध्यान नहीं दिया गया | अकेले 2015-16 में ही 84% होने वाली दुर्घटनाएं रेल पटरी पर उतर जाने की वजह से हुईं | इन सभी दुर्घटनाओं में पटरियों का रख रखाव और सही मरमत समय पर न होना मुख्य कारण पाया गया | एक तरफ पटरियों की मरम्मत में लापरवाही और दूसरी तरफ बहुत ही कम समय के अंतराल में पटरियों पर रेल दौड़ाकर दुगुना तिगुना भार बढ़ाया जा रहा है | रेल चालकों पर मानसिक दबाव डाला जा रहा है उन्हें 120 /130 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार के लिए बाध्य किया जा रहा है परन्तु जमीनी हकीकत यह है कि उनके रखरखाव में कमी होने के कारण 60 किलोमीटर की रफ़्तार में दुर्घटनाये होने लग गयी हैं |
प्रस्तुति ने रेल प्रशासन को पूरी तरह जिम्मेदार ठहराया ,लाखों की तादाद में रेल में कर्मचारियों के पद (सुरक्षा कर्मचारियों के अतिरिक्त) रिक्त हैं परन्तु उन्हें न भरकर सीधे सीधे प्रवासियों की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है |यह भ्रामक प्रचार फैलाया जाता है कि रेल में ज्यादा कर्मचारी हैं कई कामचोर हैं उन्हें निकालकर निजी ठेके पर दे देना चाहिए | मात्र अमेरिका की ओर देखें जो कि आज दुनिया का सबसे प्रगत देश है वहां हर चार प्रवासी के पीछे एक रेल कर्मचारी है, भारतीय रेल में यह आंकड़ा 17 प्रवासी है | पश्चिम रेल जो बहुत ही व्यस्त मार्ग है वहां एक कर्मचारी को औसतन 40 प्रवासियों को संभालना पड़ता है | रेल प्रशासन 2020 का लक्ष्य तो यह है कि वर्तमान स्वीकृत कर्मचारियों की संख्या में प्रति वर्ष १ प्रतिशत की कटौती और वह भी उस 3 प्रतिशत के अतिरिक्त जो सालाना मरते है और सेवानिवृत होते हैं | इन सब नीतियों का दबाव सीधे तौर पर दिखता है ,रेल चालक दयनीय परिस्थिति में कार्य करने के लिए विवश है | पर्याप्त आराम का न मिलना, समय से ज्यादा कार्य करना | ठीक इसी तरह गार्ड्स , ट्रैकमैन, गैंगमैन ,वर्कशॉप्स इत्यादि जगहों पर काम के हालात बिगड़ चुके है | निजी ठेकेदारों को लाया जा रहा है और बहुत ही कम वेतन पर मजदूरों से काम करवा कर खुद के मुनाफे बढ़ाये जा रहे हैं | गैर तकनीक वाले कर्मचारियों से कार्य करवाकर प्रवासियों को मौत के मुंह में ढकेला जा रहा है |चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को आला अधिकारी अपनी जी हुज़ूरी में व्यस्त रखते हैं |
रेल प्रवासियों की सुरक्षा के मात्र ढोल बजाने से कुछ हो नहीं सकता जब तक उसके लिए कुछ प्रावधान नहीं किया जाता | यह कहना बिलकुल गलत होगा कि प्रवासियों की सुरक्षा के पुख्ता इंतज़ाम इसलिए नहीं हो सकते क्यूंकि भारी मात्रा में सरकार यात्रियों के सब्सिडी का खर्चा उठा रही है क्यूंकि प्रवासियों की सब्सिडी का खर्च मात्र 30,000 करोड़ रूपया सालाना है जबकि बड़े उद्योगपतियों को दी जाने वाली सालाना टैक्स रियायत 6 लाख करोड़ है | पिछले कुछ साल में सरकार ने 2 लाख करोड़ रुपये के पूंजीपतियों के कर्जे माफ़ कर दिए | यह आंकड़े देख कर एक साधारण सा व्यक्ति बता सकता है कि कौन हमारी असुरक्षा के लिए जिम्मेदार है और सबसे पहले किसकी सब्सिडी ख़त्म करनी चाहिए ? बुलेट ट्रैन के निर्णय में यह साफ़ तौर पर दिखता है कि एक तरफ सिर्फ 35,000 प्रवाशियों के लिए 1 लाख करोड़ रुपये जमाये जा सकते हैं लेकिन दूसरी तरफ लगभग सवा दो सौ करोड़ प्रवासियों का सफ़र सुरक्षित हो इसके लिए सदा धन की कमी बताई जाती है|
कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी के वक्ता ने बताया कि यह सवाल पूरी तरह राजनितिक है | हम इस सवाल को अलग करके नहीं समझ सकते | आज का राज्य पूरी तरह से चंद घरानों के हितों का ही प्रतिनिधित्व करता है फिर सवाल चाहे अर्थ व्यवस्था का हो या राजनीति का या फिर कुछ और | यदि पूरी राज्य यंत्रणा ही उनके हाथ में है तो फिर निर्णय भी उनके पक्ष में किये जाएंगे | करोड़ों जनता और चंद खुदगर्ज़ हितों के बाच हमेशा से ही टकराव होता आया है | आज जरुरत है कि 100 साल पहले जिस तरह रूस ने अपने राज्य को बदला हमें भी उससे सीख कर प्रेरित होकर आज के राज्य को पलटने की जरुरत है | कई और संगठनों ने भी खास कर प्रवासी संगठन जो अब तक रेल कर्मचारियों को अपनी समस्याओं के लिए जिम्मेदार समझते थे उन्होंने रेल कर्मचारियों की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया | उस दिन की मीटिंग ने यह दिखाया कि यह प्रश्न न ही अकेले रेल कर्मचारी और न ही अकेले रेल प्रवासी का है इसलिए यह वक़्त की मांग है कि सभी को एक साथ मिलकर रेल प्रवासी और कर्मचारी के हक़ में आवाज़ बुलंद की जाये |
एक बात जो मुझे बहुत अच्छी लगी कि कई सालों से अब तक अलग अलग लड़ रही संगठनों ने एक दूसरे के दुःख को पहचान कर एक सांझा मोर्चा बनाकर लड़ने की ठानी है और यह मांग की है कि रेल तथा उससे जुड़े किसी भी विषय पर फिर चाहे सवाल सुरक्षा को लेकर हो या खर्च को लेकर हर विषय पर सरकार को निर्णय प्रक्रिया में हमें सहभागी करना होगा | रेल मजदूरों और प्रवासियों की एकता और निर्णय प्रक्रिया में सहभागी होने के मकसद ने मीटिंग को ऐतिहासिक बनाया |उस दिन ऐसा लगा कि हम मुसाफिरों की तरफ हवाओं का रुख बदल गया है और बहुत ही जल्द हम सुख और सुरक्षित पूर्ण तरीके से यात्रा कर सकेंगे | लोक राज संगठन की इस पहल के लिए मैं स्पार्क के माध्यम से बधाई देना चाहता हूँ और इसकी सफलता के लिए अपने पूरे योगदान का वचन देता हूँ |
– प्रथम