( दिल्ली के सेशन जज ने असेंबली बम केस में भगत सिंह को आजन्म कारावास दण्ड दिया था | लाहौर हाईकोर्ट में उसकी अपील की गयी | दिल्ली अदालत के निर्णय की आलोचना करते हुए भगत सिंह ने हाई कोर्ट में यह दूसरा बयान दिया | – सं )
हमारे उद्देश्य पर ध्यान दें
माय लार्ड,
हम न वकील हैं, न अंग्रेजी विशेषज्ञ हैं और न हमारे पास डिग्रीयां ही हैं, इसलिए हमसे शानदार भाषणों की आशा न की जाये | हमारी प्रार्थना है कि हमारे बयान की भाषा सम्बन्धी त्रुटियों पर ध्यान न देतें हुए, उसके वास्तविक अर्थ को समझने का प्रयत्न किया जाये | दूसरे तमाम मुद्दों ( पॉइंट्स) को अपने वकीलों पर छोड़ते हुए, मैं स्वयं एक मुद्दे पर अपने विचार प्रकट करूँगा | यह मुद्दा इस मुकदमे में बहुत ही महत्वपूर्ण है | मुद्दा यह है कि हमारी नीयत क्या थी और हम किस हद तक अपराधी हैं |
यह बड़ा पेचीदा मामला है, इसलिए कोई व्यक्ति भी आपकी सेवा में विचारों के विकास की वह ऊंचाई प्रस्तुत नहीं कर सकता, जिसके प्रभाव में हम एक खास ढंग से सोचने और व्यवहार करने लगे थे | हम चाहते हैं कि इसे दृष्टी में रखते हुए ही हमारी नीयत और अपराध का अनुमान लगाया जाये | प्रसिद्ध कानून–विशारद सालोमन के अनुसार किसी भी व्यक्ति को उसके अपराधी आचरण के लिए उस समय तक सजा नहीं मिलनी चाहिए, जब तक उसका उद्देश्य कानून–विरोधी सिद्ध न हो |
सेशन जज की अदालत में हमने जो लिखित बयान दिया था, वह हमारे उद्देश्य की व्यख्या करता है और उस रूप में हमारी नीयत की व्याख्या भी करता था, लेकिन सेशन जज महोदय ने कलम की एक ही नोक से यह कहकर कि “आमतौर पर अपराध को व्यवहार में लानेवाली बात कानून के कार्य को प्रभावित नहीं करती और इस देश में कानूनी व्याख्याओं में कभी–कभार उद्देश्य और नीयत की चर्चा होती है”, हमारी सब कोशिशें बेकार कर दी |
माय लार्ड, इन परिस्थितियों में सुयोग्य सेशन जज को उचित था कि या तो अपराध का अनुमान परिणाम से लगाते या हमारे बयान की मदत से मनोवैज्ञानिक पहलू का फैसला करते, पर उन्होंने इन दोनों में से एक भी काम नहीं किया |
विचारणीय बात यह है की असेंबली में हमने जो दो बम फेकें, उनसे किसी भी ब्यक्ति की शारीरिक या आर्थिक हानि नहीं हुयी है | इस दृष्टीकोण से हमें जो सजा दी गयी है वह कठोरतम ही नहीं, बदला लेने की भावना वाली भी है | यदि दूसरे दृष्टीकोण से देखा जाये तो जब तक अभियुक्त की मनोभावना का पता न लगाया जाए, उसके असली उद्देश्य का पता ही नहीं चल सकता | यदि उद्देश्य को पूरी तरह से भुला दिया जाए तो किसी भी व्यक्ति के साथ न्याय नहीं हो सकता, क्योंकि उद्देश्य को नज़रों में न रखने पर संसार के बड़े– बड़े सेनापति साधारण हत्यारे नजर आयेंगे, सरकारी कर वसूल करने वाले अधिकारी चोर, जालसाज दिखाई देंगे और न्यायाधीशों पर भी क़त्ल करने का अभियोग लगेगा| इस तरह तो समाज–व्यवस्था और सभ्यता खूनखराबा, चोरी और जालसाजी बनकर रह जाएगी | यदि उद्देश्य की उपेक्षा की जाए, तो किसी हुकूमत को क्या अधिकार है समाज के व्यक्तियों से न्याय करने को कहे ? उद्देश्य की उपेक्षा की जाए तो हर धर्मप्रचारक झूठ का प्रचारक दिखाई देगा और हर एक पैगम्बर पर अभियोग लगेगा की उसने करोडो भोले और अनजान लोगो को गुमराह किया | यदि उद्दयेश्य को भुला दिया जाए तो हजरत ईसा मसीह गड़बड़ करानेवाले, शांति भंग करनेवाले और विद्रोह का प्रचार करनेवाले दिखाई देंगे और कानून के शब्दों में ‘खतरनाक व्यक्तिव’ माने जायेंगे, लेकिन हम उनकी पूजा करते हैं, उनका हमारे दिलों में बेहद आदर है, उनकी मूर्ति हमारे दिलों से आध्यात्मिकता का स्पंदन पैदा करती है | यह क्यों ? यह इस लिए की उनके प्रयत्नों का प्रेरक एक ऊँचें दर्जे का उद्देश्य था | उस युग के शासकों ने उनके उद्देश्य को नहीं पहचाना, उन्होंने उनके बाहरी व्यवहार को ही देखा, लेकिन उस समय से लेकर इस समय तक उन्नीस शताब्दियाँ बीत चुकी है , क्या हमने तब से लेकर अब तक कोई तरक्की नहीं की? हम ऐसी गलतियाँ दोहराएंगे? अगर ऐसा हो तो मानना पड़ेगा की इंसानियत की कुर्बानिया , बड़े शहीदों के प्रयत्न बेकार रहे और आज भी हम उसी स्थान पर है, जहा आज से बीस शताब्दियों पहले थे ?
कानूनी दृष्टी से उद्देश्य का प्रश्न खास महत्व रखता है | जनरल डायर का उदाहरण लीजिए | उसने गोली चलायी और सैकड़ो निरपराध शस्त्रहीन व्यकतियो को मार डाला, लेकिन फौजी अदालत ने उसे गोली का निशाना बनाने के हुक्म देने की जगह लाखो रुपये इनाम दिये | एक और उदाहरण पर ध्यान दीजिये – श्री खड़गबहादुर सिंह ने, जो एक गोरखा नौजवान है, कलकत्ता में एक अमीर मारवाड़ी को छुरे से मार डाला | यदि उद्देश्य को एक तरफ रख दिया जाये तो खड़गबहादुर को मौत की सजा मिलनी चाहिए थी, लेकिन उसे कुछ वर्षो की सजा दी गयी और उस अवधी से बहुत पहले ही मुक्त कर दिया गया | क्या क़ानून में कोई दरार रखनी
हमें सजा का भय नही है | लेकिन हम यह नही चाहते की हमें गलत तौर पर समझा जाये | हमारे बयान से कुछ पैराग्राफ काट दिए गये है, यह वास्तविक स्थिति के दृष्टी से हानिकारक है |
थी, जो उसे मौत की सजा न दी गयी ? या उसके विरुद्ध हत्या का अभियोग सिद्ध न हुआ ? उसने हमारी ही तरह अपना अपराध स्वीकार किया था, लेकिन उसका जीवन बच गया और वह स्वतंत्र है | मै पूछता हूँ, उसे फांसी की सजा क्यों नही दी गयी ? उसका कार्य जँचा–तुला था | उसने पेचीदा ढंग की तैयारी की थी | उद्देश्य की द्रष्टि से उसका कार्य (एक्शन) हमारे कार्य की अपेक्षा ज्यादा घातक और संगीन था | उसे इसलिए बहुत ही नर्म सजा मिली क्योंकि उसका मकसद नेक था | उसने समाज को एक ऐसी जोंक से छुटकारा दिलाया, जिसने कई एक सुन्दर लड़कियों का खून चूस लिया था | श्री खड़गबहादुर सिंह को महज कानून की प्रतिष्ठा बचाए रखने के लिए कुछ वर्षो की सजा दी गयी |
यह सिद्धांत किस कदर गलत है | यह न्याय के बुनियादी सिद्धांत का विरोध है , जो कि इस प्रकार है – कानून आदमियों के लिए है, आदमी कानून के लिए नहीं है | इस दशा में क्या कारण है कि हमें भी वे रियायते न दी जाये, जो श्री खडगबहादुर सिंह को मिली थी | स्पष्ट है कि उसे नर्म सजा देते समय उसका उद्देश्य द्रष्टि में रखा गया था, अन्यथा कोई भी व्यक्ति जो किसी दूसरे का क़त्ल करता है, फाँसी की सजा से नहीं बच सकता | क्या इसलिए हमें आम कानूनी अधिकार नहीं मिल रहा की हमारा कार्य हुकूमत के विरुद्ध था या इसलिए कि इस कार्य का राजनैतिक महत्व है?
माय लार्ड, इस दशा में मुझे यह कहने की आज्ञा दी जाए कि जो हुकूमत इन कमीनी हरकतों में आश्रय खोजती है, जो हुकूमत व्यक्ति के कुदरती अधिकार छिनती है, उसे जीवित रहने का कोई अधिकार प्राप्त नहीं | अगर वह कायम है, तो आरजी तौर पर और हजारों बेगुनाहों का खून उसकी गर्दन पर है | यदि कानून उद्देश्य नहीं देखता, तो न्याय नहीं हो सकता और न ही स्थायी शांति स्थापित हो सकती है | आटे में संखिया( जहर) मिलाना जुर्म नहीं, बशर्ते कि इसका उद्देश्य चूहों को मारना हो, लेकिन यदि इससे किसी आदमी को मार दिया जाए यह क़त्ल का अपराध बन जाता है | लिहाजा ऐसे कानूनों पर जो युक्ति( दलील) पर आधारित नहीं और न्याय के सिद्धांत के विरुद्ध है, उन्हें समाप्त कर देना चाहिए | ऐसे ही न्याय–विरोधी कानूनों के कारण बड़े–बड़े श्रेष्ठ बौद्धिक लोगों ने बग़ावत के कार्य किये हैं |
हमारे मुकदमे के तथ्य बिल्कुल सादा है | 8 अप्रैल, 1929 को हमने सेंट्रल असेंबली में दो बम फेंके | उनके धमाके से चंद लोगों को मामूली खरोंचे आयी | चेम्बर में हंगामा हुआ, सैकड़ो दर्शक और सदस्य बाहर निकल गए | कुछ देर बाद ख़ामोशी छा गयी | मैं और साथी बी. के. दत्त खमोशी के साथ दर्शक गैलरी में बैठे रहे और हमने स्वंय अपने को प्रस्तुत किया कि हमें गिरफ्तार कर लिया जाये | हमें गिरफ्तार कर लिया गया | अभियोग लगाये गए और हत्या करने के प्रयत्न के अपराध में हमें सजा दी गयी, लेकिन बमों से 4-5 आदमियों को मामूली चोटें आयीं और एक बेंच को मामूली– सा नुकसान पंहुचा, और जिन्होंने यह अपराध किया, उन्होंने बिना किसी किस्म के हस्तक्षेप के अपने आप को गिरफ्तारी के लिए पेश कर दिया | सेशन जज ने स्वीकार किया कि यदि हम भागना चाहते तो भागने में सफल हो सकते थे | हमने अपना अपराध स्वीकार किया और अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए बयान दिया | हमें सजा का भय नहीं है लेकिन हम यह नहीं चाहते कि हमें गलत तौर पर समझा जाये | हमारे बयान से कुछ पैराग्राफ काट दिए गये हैं, यह वास्तविक स्थिति की द्रष्टि से हानिकारक है |
समग्र रूप में हमारे व्यक्तव्य के अध्ययन से साफ प्रकट होता है कि हमारे द्रष्टि कोण से हमारा देश एक नाजुक दौर से गुजर रहा है | इस दशा में काफी ऊँची आवाज में चेतावनी देने की जरूरत थी और हमने विचारनुसार चेतवानी दी है | संभव है कि हम गलती पर हो, हमारा सोचने का ढंग जज महोदय के सोचने के ढंग से भिन्न हो, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि हमें अपने विचार प्रकट करने की स्वीकृति न दी जाये और गलत बातें हमारे साथ जोड़ी जायें |
इन्कलाब जिंदाबाद और साम्राज्यवाद मुर्दाबाद के सम्बन्ध में हमने जो व्याख्या अपने बयान में दी, उसे उड़ा दिया गया है हालाँकि यह हमारे उद्देश्य का खास भाग है | इन्कलाब जिंदाबाद से हमारा वह उद्देश्य नहीं था, जो आम तौर पर गलत अर्थ में समझा जाता है | पिस्तौल और बम इन्कलाब नहीं लाते, बल्कि इन्कलाब की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है और यही चीज थी जिसे हम प्रकट करना चाहते थे | हमारे इन्कलाब का अर्थ पूंजीवादी युद्धों की मुसीबतों का अंत करना है | मुख्य उद्देश्य और प्राप्त करने की प्रक्रिया समझे बिना किसी के सम्बन्ध में निर्णय देना उचित नहीं है | गलत बातें हमारे साथ जोड़ना साफ़–साफ़ अन्याय है |
इसकी चेतावनी देना बहुत आवश्यक था | बेचैनी रोज–रोज बढ़ रही है | यदि उचित इलाज न किया गया, तो रोग खतरनाक रूप ले लेगा | कोई भी मानवीय शक्ति इसकी रोकथाम न कर सकेगी | अब हमने इस तूफ़ान का रुख बदलने के लिए यह कार्रवाई की | हम इतिहास के गंम्भीर अध्येता हैं | हमारा विश्वास है कि यदि सत्ताधारी शक्तियां ठीक समय पर सही कार्र्वायियाँ करती, तो फ़्रांस और रूस की खुनी क्रांतियाँ न बरस पड़तीं | दुनिया की कई बड़ी–बड़ी हुकूमतें विचारों के तूफान को रोकते हुए खून–खराबे के वातावरण में डूब गयीं | सत्ताधारी लोग परिस्थितियों के प्रवाह को बदल सकते हैं | हम पहली चेतवानी देना चाहते थे और यदि कुछ व्यक्तियों की हत्या करने इच्छुक होते, तो हम अपने मुख्य उद्देश्य में असफल हो जाते | माय लार्ड, इस नीयत( भावना) और उद्देश्य को द्रष्टि में रखते हुए हमने कार्रवाई की और इस कार्रवाई के परिणाम हमारे बयान का समर्थन करते हैं | एक और नुक्ता( पॉइंट) स्पष्ट करना आवश्यक है | यदि हमें बमों की ताकत के सम्बन्ध में कतई ज्ञान न होता, तो हम पं. मोतीलाल नेहरु, श्री केलकर, श्री जयकर और श्री जिन्ना जैसे सम्मानीय राष्ट्रीय व्यक्तियों की उपस्थिति में क्यों बम फेकते? हम नेताओं के जीवन किस तरह खतरे में डाल सकते थे? हम पागल तो नहीं हैं? और अगर पागल होते तो जेल में बन्द करने बजाय हमें पागलखाने में बन्द किया जाता | बमों के सम्बन्ध में हमें निश्चित जानकारी थी | उसी के कारण हमने ऐसा साहस किया | जिन बेंचों पर लोग बैठे थे, उन पर बम फेंकना कही आसान काम था, लेकिन खाली जगह पर बमों को फेंकना निहायत मुश्किल काम था | अगर बम फेंकनेवाले सही दिमागों के न होते या वे परेशान (असन्तुलित) होते तो बम खाली जगह की बजाय बेंचों पर गिरते | तो मै कहूँगा कि खाली जगह के चुनाव के लिए जो हिम्मत हमने दिखायी, उसके लिए हमें इनाम मिलना चाहिए | इन हालात में, माय लार्ड, हम सोचते हैं कि हमें ठीक तरह समझा नहीं गया | आपकी सेवा में हम सजाओं में कमी कराने नहीं आये, बल्कि अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए आये हैं | हम चाहते है कि न तो हमसे अनुचित व्यवहार किया जाये, न ही हमारे सम्बन्ध में अनुचित राय दी जाये | सजा का सवाल हमारे लिए गौण है |