
(यह लेख मजदूर एकता लहर के 16 जनवरी 2018 से पुनर्प्रकाशित किया गया है)
दिसंबर 2017 में महाराष्ट्र सरकार ने शिक्षा से संबंधित दो फैसले लिए, जिनके शिक्षा पर बहुत बुरे और दूरगामी परिणाम होंगे। दिसंबर के पहले सप्ताह में सरकार ने ऐलान किया कि वह पूरे राज्य में 1314 स्कूलों को बंद करने जा रही है। अपने इस फैसले को जायज़ ठहराते हुए, महाराष्ट्र के शिक्षा मंत्री ने कहा कि वे स्कूल जिनमें 10 से कम छात्र हैं, शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आर.टी.ई.) के प्रावधानों के अनुसार, सरकार को ऐसे स्कूलों को बंद करने का अधिकार है। उन्होंने बड़ी ही बेशर्मी के साथ आगे बताया कि दरअसल इस अधिनियम के तहत 20 से कम छात्रों वाले स्कूलों को भी बंद करने का प्रावधान है, जिसका मतलब है कि राज्य में किये गए 2009 के सर्वेक्षण के मुताबिक 12000 स्कूलों को बंद किया जा सकता है, लेकिन सरकार प्राथमिक शिक्षा के बारे में बहुत चिंतित है इसलिए वह केवल 3000 स्कूलों को ही बंद कर रही है!
शिक्षा मंत्री ने आगे यह आश्वासन दिया कि बंद किये गए स्कूलों के छात्रों और शिक्षकों का भी ध्यान रखा जायेगा और उन्हें आस-पास के किसी अन्य स्कूल में जगह दी जाएगी। इस बात पर गौर किया जाना चाहिए कि जिन स्कूलों को बंद किया जा रहा है इनमें से अधिकांश स्कूल कोल्हापुर, पुणे, अमरावती, सतारा, नागपुर, मराठवाड़ा और गड़चिरौली के दुर्गम आदिवासी इलाकों में स्थित हैं। आर.टी.ई. अधिनियम के मुताबिक किसी भी प्राथमिक स्कूल को आबादी से 1.5 किलोमीटर के भीतर बनाया जाना चाहिए, जबकि मौजूदा स्कूलों को बंद करने के बाद छात्रों को जिन स्कूलों में “स्थानांतरित” किया जायेगा वे 3 किलोमीटर से अधिक दूरी पर स्थित होंगे और कुछ तो आबादी से 8 किलोमीटर की दूरी पर होंगे। ऐसे स्कूलों तक पहुंचने के लिए छात्रों को रोज़ाना पहाड़ों, नदियों और जंगलों को पार करके जाना पड़ेगा। कुछ मामलों में तो छात्रों को पढ़ाई का माध्यम भी बदलने के लिए मजबूर होना होगा।
सरकार के इस फैसले से बच्चों के अभिभावक बेहद गुस्से में हैं, क्योंकि अधिकांश बच्चों के लिए इसका मतलब है कि उन्हें प्राथमिक स्कूल की पढ़ाई भी नसीब नहीं होगी। शिक्षा मंत्री के इस ऐलान के बाद शिक्षाविदों, शिक्षकों, छात्रों और तमाम प्रभावित लोगों ने इस फैसले का कड़ा विरोध किया है और मंत्री के धूर्ततापूर्ण आश्वासनों का पर्दाफाश किया है।
आर.टी.ई. कानून के मुताबिक 6-14 वर्ष तक के प्रत्येक बच्चे को गुणवत्तापूर्ण प्राथमिक शिक्षा मुफ्त में हासिल करने का अधिकार है और इसको सुनिश्चित करना सरकार की ज़िम्मेदारी है। आर.टी.ई. अधिनियम साफ तौर से बताता है कि स्कूल पड़ोस में ही स्थित हो। इसके साथ ही आर.टी.ई. अधिनियम सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा देने के लिए सरकार, स्थानीय प्रशासन और अभिभावकों की भूमिका और ज़िम्मेदारी को भी साफ तौर से निर्धारित करता है।
जब यह आर.टी.ई. अधिनियम लागू किया गया था उस वक्त तमाम राजनीतिक पार्टियों और नेताओं ने इसका श्रेय लेने की कोशिश की थी। लेकिन हम सभी इस बात को जानते हैं कि न तो केंद्र सरकार और न ही राज्य सरकार इसको लागू करने के लिए कोई ठोस कदम उठा रही हैं। महाराष्ट्र में दसों हजारों शिक्षकों के पद खाली पड़े हैं और बरसों से उन्हें भरा नहीं जा रहा है। 2013-14 की डिस्ट्रिक्ट इनफॉर्मेशन सिस्टम ऑफ एजुकेशन (डायीस) की रिपोर्ट के मुताबिक 1.05 लाख स्कूलों में से 23,099 यानी केवल 22 प्रतिशत स्कूल आर.टी.ई. अधिनियम द्वारा निर्धारित 10 मानकों पर खरे उतरते हैं।
इस बात पर भी गौर किया जाना चाहिए कि इसी महाराष्ट्र सरकार ने हाल ही में एक सरकारी आदेश जारी किया है जिसके मुताबिक सरकार 100 ऐसे स्कूलों की स्थापना करेगी जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर के होंगे। इन स्कूलों को ओजस और तेजस नाम दिया जायेगा। दिसंबर 2017 में महाराष्ट्र विधानसभा के शीतकालीन सत्र में सरकार ने एक विधेयक पारित किया जिसके मुताबिक निजी कंपनियों को महाराष्ट्र में स्कूल खोलने की इज़ाज़त दी जाएगी। इससे पहले केवल ट्रस्टों को ही ऐसे स्कूल खोलने की इज़ाज़त थी।
महाराष्ट्र सरकार के ये दोनों ही फैसले साफ तौर पर दिखाते हैं कि सरकार हमारे बच्चों को प्राथमिक शिक्षा मुहैया कराने की अपनी ज़िम्मेदारी से पीछा छुड़ाना चाहती है। आज यह हक़ीक़त है कि अच्छी गुणवत्ता की माध्यमिक और उच्चम माध्यमिक शिक्षा हासिल करना समाज के मध्यम तबके की पहुंच से भी बाहर हो गया है। सरकार के ये कदम प्राथमिक शिक्षा को भी आम लोगों की पहुंच से बाहर कर देंगे।
सभी मज़दूर संगठनों, किसान संगठनों और जन संगठनों को एकजुट होकर सरकार के इन कदमों का विरोध करना चाहिए और यह मांग करनी चाहिए कि उच्चम माध्यमिक स्तर तक मुफ्त तथा अच्छी गुणवत्ता की, समान व सर्वव्यापी शिक्षा हासिल करना हिन्दोस्तान के हर एक नागरिक का बुनियादी अधिकार हो।