श्री संपादक जी,
मॉडर्न रिव्यु
आप ने अपने सम्मानित पत्र के दिसम्बर, 1929 के अंक में एक टिप्पणी ‘इंकलाब जिंदाबाद’ शीर्षक से लिखी है और इस नारे को निरर्थक ठहराने की चेष्टा की है | आप सरीखे परिपक्कव विचार तथा अनुभवी और यशस्वी संपादक के रचना में दोष निकालना तथा उनका प्रतिवाद करना, जिसे प्रत्येक भारतीय सम्मान के द्रष्टि से देखता है, हमारे लिए धृष्टता होगी | तो भी इस प्रश्न का उत्तर देना हम अपना कर्त्तव्य समझते हैं कि इस नारे से हमारा क्या अभिप्राय है |
यह आवश्यक है, क्योंकि इस देश में इस समय इस नारे को सब लोग तक पहुँचाने का कार्य हमारे हिस्से में आया है | इस नारे की रचना हमने नहीं की है | यह नारा रूस के क्रन्तिकारी आंदोलन में प्रयोग किया गया है | प्रसिद्ध समाजवादी लेखक अप्टन सिंक्लेयर ने अपने उपन्यासों ‘बोस्टन और आईल’ में यही नारा अराजकतावादी क्रांतिकारी पात्रों के मुख से प्रयोग कराया है | इसका अर्थ क्या है? इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि सशत्र संघर्ष सदैव जारी रहे और कोई भी व्यवस्था अल्प समय के लिए भी स्थायी न रह सके, दूसरे शब्दों में – देश और समाज में आराजकता फैली रहे |
दीर्घकाल से प्रयोग में आने के कारण इस नारे को एक ऐसी विशेष भावना प्राप्त हो चुकी है, जो सम्भव है भाषा के नियमो एवं कोष के आधार पर इसके शब्दों से उचित तर्कसम्मत रूप में सिद्ध न हो पाए, परन्तु इसके साथ ही इस नारे से उन विचारों को पृथक नहीं किया जा सकता, जो इसके साथ जुड़े हुए हैं | ऐसे समस्त नारे एक ऐसे स्वीकृत अर्थ को द्योतक हैं, जो एक सीमा तक उनमे उत्त्पन्न हो गए हैं एक सीमा तक उनमे निहित हैं |
उदहारण के लिए हम यतीन्द्रनाथ जिंदाबाद का नारा लगाते हैं | उससे हमारा तात्पर्य यह होता है कि उनके जीवन के महान आदर्शो तथा उस अथक उत्साह को सदा-सदा के लिए बनाये रखें, जिसने इस महानतम बलिदानी को उस आदर्श के लिए अकथनीय कष्ट झेलने एवं असीम बलिदान करने की प्रेरणा दी | यह नारा लगाने से हमारी यह लालसा प्रकट होती है कि हम भी अपने आदर्शों के लिए ऐसे ही अचूक उत्साह को अपनायें | यही वह भावना है, जिसकी हम प्रशंसा करते है | इसी प्रकार हमें ‘इन्कलाब’ शब्द का अर्थ भी कोरे शाब्दिक रूप में नहीं लगाना चाहिए | इस शब्द को उचित एवं अनुचित प्रयोग करनेवाले लोगों के हितों के आधार पर किसके साथ विभिन्न अर्थ एवं विभिन्न विशेषताएं जोड़ी जाती हैं | क्रांतिकारियों की दृष्टि में यह एक पवित्र वाक्य है | हमने इस बात को ट्रिब्यूनल के सम्मुख अपने वक्तव्य में स्पष्ट करने का प्रयास किया था |
इस वक्तव्य में हमने कहा था कि क्रांति (इन्कलाब) का अर्थ अनिवार्य रूप में सशत्र आन्दोलन नहीं होता | बम और पिस्तौल कभी-कभी क्रांति को सफल बनाने के साधन मात्र हो सकते हैं | इसमें भी संदेह नहीं है कि कुछ आन्दोलन में बम एवं पिस्तौल एक महत्वपूर्ण साधन सिद्ध होते हैं, परन्तु केवल इसी कारण से बम और पिस्तौल क्रांति के पर्यायवाची नहीं हो जाते | विद्रोह को क्रांति नहीं कहा जा सकता, यद्यपि यह हो सकता है कि विद्रोह का अंतिम परिणाम क्रांति हो |
इस वाक्य में क्रांति शब्द का अर्थ ‘प्रगति के लिए परिवर्तन की भावना एवं आकांक्षा’ है | लोग साधारणतयाः जीवन की परम्परागत दशाओं के साथ चिपक जाते हैं और परिवर्तन के विचार मात्र से ही कांपने लगते हैं | यही एक अकर्मण्यता की भावना है, जिसके स्थान पर क्रांतिकारी भावना जागृत करने की आवश्यकता है | दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि अकर्मण्यता का वातावरण निर्मित हो जाता है और रुढ़िवादी शक्तियां मानव समाज को कुमार्ग पर ले जाती हैं | ये परिस्थितियां मानव समाज की उन्नति में गतिरोध का कारण बन जाती हैं |
क्रांति की इस भावना से मनुष्य जाति की आत्मा स्थायी तौर पर ओतप्रोत रहनी चाहिए, जिससे कि रुढ़िवादी शक्तियां मानव समाज की प्रगति की दौड़ में बाधा डालने के लिए संगठित न हो सके | यह आवश्यक है कि पुरानी व्यवस्था सदैव न रहे और वह नयी व्यवस्था के लिए स्थान रिक्त करती रहे, जिससे कि एक आदर्श व्यवस्था संसार को बिगाड़ने से रोक सके | यह है हमारा वह अभिप्राय जिसको ह्रदय में रखकर ‘इन्कलाब जिंदाबाद’ का नारा ऊँचा करते हैं |
22 दिसम्बर, 1929
भगत सिंह- बी. के. दत्त