
बंद फैक्टरीयां, बिक रहे कारखाने कई हजार,
जब नौजवां दर-दर भटके बेरोजगार, तब क्या करोगें ?
जल, जंगल, जमीन लुट गयी गरीब की,
एक तरफ सत्ता और दौलत बेसुमार, तब क्या करोगें ?
हैं आधुनिक हथियार और हो मंगल का सरताज,
फिर भी जनता मरती सूखा और बाढ़, तब क्या करोगें ?
धर्म और मजहब मे उल्झा रहा आवाम,
सियासत का है ये बहुत पूराना व्यापार, तब क्या करोगें ?
लग जाती हैं बेडी़यां, सिल दी जाती हैं ज़बान,
जब बिगड़ते हालात पर पूछे कोइ सवाल, तब क्या करोगें ?
-दिनेश