25 अक्तूबर, 2019 को भारतीय रेल में निजीकरण के खि़लाफ़ छात्रों ने एक बड़ा प्रदर्शन किया और रेल रोको आंदोलन चलाया। यह आंदोलन बिहार के कई शहरों पटना, आरा, सासाराम, नवादा, औरंगाबाद और समस्तीपुर, आदि जगहों पर किया गया। इसमंे हजारों छात्रों-युवाओं ने हिस्सा लिया, यह प्रदर्शन इतना विशाल था कि हाल के वर्षों में ऐसा प्रदर्शन पहले नहीं हुआ। सासाराम में सड़क रोको से इस आंदोलन की शुरुआत हुई। जब पुलिस ने विद्यार्थियों को वहां से हटा दिया तब वे सासाराम रेलवे स्टेशन की रेल पटरियों पर बैठ गये और मुगलसराय को आने-जाने वाली सभी रेलगाड़ियां रोक दीं। सुबह 10.30 से शाम 5 बजे तक तकरीबन 20 गाड़ियां रोक दी गयीं।
अलग-अलग स्टेशनों पर छात्र सुबह से ही इकट्ठा होने लगे थे। छात्रों ने अपने हाथों में बैनर लिये हुये थे, जिनपर लिखा था, भारतीय रेल का निजीकरण बंद करो!, ‘रेलवे का निजीकरण और निगमीकरण बंद हो!’, ‘रेलवे को पूजीपतियों के बेचना बंद हो!’, ‘रेलवे भारतीय नागरिकों की संपत्ति है, न की किसी के बाप की!’, ‘नई भरती तुरंत खोली जाए।‘, ‘रेलवे में रिक्त पदों को तुरंत भरा जाये!’, ‘हम रेलवे कर्मचारियों के साथ हैं!’, ‘अभी तो ये अंगडाई है, आगे और लड़ाई है!’, वे इन नारों को जोश के साथ बोल भी रहे थे, नारों की आवाज़ से आसमान गूंज उठा था। छात्रों ने कई स्टेशनों पर रेलवे ट्रैक पर प्रदर्शन किये। वहीं, औरंगाबाद के ओबरा में छात्रों ने पैदल मार्च निकाला तथा नवादा में ट्रेनों को रोका। इधर, पटना में भी रेलवे के निजीकरण और रेलवे से साढ़े तीन लाख से ज्यादा पदों को समाप्त किये जाने के विरोध में प्रदर्शन किये गये।
आंदोलन का दमन करने के लिये पुलिस ने लाठीचार्ज किया, आंसू गैस के गोले छोड़े और छात्रों पर बर्बरता पूर्ण दमन के बाद पुलिस ने 18 छात्रों को गिरफ़्तार करके जेल में बंद कर दिया। प्रदर्शन के वीडियो के आधार पर पुलिस बाकी छात्रों की तलाश कर रही है, ताकि आंदोलन करने वालों को गिरफ़्तार करके प्रताड़ित किया जा सके।
रेलवे में निजीकरण के कारण सरकारी नौकरियों के ख़त्म होने की बात पर छात्रों में गुस्सा है। उनका कहना है कि रेलवे का निजीकरण सरकारी नौकरियों की उनकी आशा को नष्ट कर देगा, क्योंकि राष्ट्रीय ट्रांसपोर्टर यानी भारतीय रेल सरकारी नौकरियों का अब तक का सबसे बड़ा प्रदाता रहा है।
रेल मंत्रालय ने 50 रेलवे स्टेशनों और 150 ट्रेनों के निजीकरण के लिए एक कमेटी बनायी है। जबकि केंद्रीय रेल मंत्री पीयूष गोयल ने बयान जारी करके कहा है कि “सरकार रेलवे का निजीकरण नहीं करने जा रही है, बल्कि निवेश लाने के लक्ष्य से पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप पर विचार कर रही है।”
रेल प्रशासन का कहना है कि निजीकरण की बातें अफवाहे हैं। विरोध प्रदर्शन में शामिल कई छात्रों ने बताया कि, “अगर निजीकरण की बात अफवाह है तो रेलवे में अचानक से नई सरकारी नौकरियों का आना क्यों रुक गया है? और सरकार खुलकर क्यों नहीं बताती कि जिस पीपीपी मॉडल पर रेलवे को चलाने की बात हो रही है, वह ज़मीन पर कैसे लागू होगा? उसमें प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी कितनी होगी?” छात्रों का यह भी मानना है कि केवल रेल मज़दूरों के अकेले के विरोध से काम नहीं होगा। इस लड़ाई को आगे ले जाने और जीतने के लिये तथा निजीकरण, निगमीकरण तथा ठेकाकरण को हराने के लिये हम छात्रों को भी अपनी भूमिका निभानी होगी।
विदित रहे कि सरकार रेलवे में लगातार निजीकरण को बढ़ावा दे रही है। भारतीय रेल को निगमों में बदलकर, एक-एक करके निगम को पूंजीपतियों के हवाले किया जा रहा है। अभी हाल में हिन्दोस्तान की पहली निजी रेल ‘तेजस’ का संचालन शुरू किया गया है। जिसका भारतीय रेल के हर विभाग ने विरोध किया। इस दौरान अनेक विरोध प्रदर्शन हुये और रेल रोकी गई। भारतीय रेल में निजीकरण के विरोध में रेल यूनियनें, राजनीतिक पार्टियां और छात्र संगठन लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।
(यह लेख ‘मजदूर एकता लहर’ से लिया गया है|)