सुन लो हुकूमत का नया फरमान,
मजदूर, किसान, औरत और जवान|
जिस मिट्टी को खून और पसीने से सींचा,
देना होगा सुबूत तुम्हें हमवतन होने का|
होगे अपने ही वतन मे तुम मुजाहिद
चंद कागज के टुकड़े साबित न हुए अगर|
एक सवाल मन मे आया मगर
एक छोटे से बीज से लहलहाती फसलों का,
सुई से लेकर आधुनिक मशीन का सफर किसने तय किया?
क्या साबित कर सकते हो?
या फिर ये सिर्फ एक साजिश है, हमें बाँटने की, अपनी नाकामीयां छुपाने कि..